सूरज अभी क्षितिज पर चढ़ा है,
लेकिन ढला नहीं है ,
अभी ही चल दिए कहाँ-
पैमाने में ज़ाम अभी बाकि है,
महफ़िल के दिए मत बुझाओ दोस्तों
क्यूंकि महफ़िल में शान अभी बाकी है,
आज मुझे मत रोको दोस्तों ,
मधुशाला के ताले मत लगाओ दोस्तों
बंदिशों की बेड़ियों में मत जक्ड़ो मुझे
खोल दो सारे मैख़ाने की बोतलें ,
बढ़ा दो पैमाने का कद
मन की हम होश में नहीं हैं ,
हमारी लड़खड़ाती क़दमों पे मत जाओ
माना की हम होश में आज नहीं ,
मगर हम बेहोश भी नहीं हैं,
क्यूंकि अभी तो सिर्फ दो घूँट ही पी है,
बेहोशी का आखरी ज़ाम तो अभी बाक़ी है
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