गुरुवार, 12 जुलाई 2012

दूर जलता दिया



कही दूर जलता एक दिया है,
  रोशनी है उसकी मद्धम ,
 पर है उसमे कुछ आकर्षण,
जो बुला रही अपने आँगन,
                                                                                        
          रात है तूफ़ानी फिर भी
        बुझती नही इसकी लौ
शायद है उसको मेरा इंतजार
   इसलिए तो  डाले नही उसनेहथियार
कुछ कहना है शायद उसको
  इसलिए है वो बेकरार
    उसको है यकीन मेरे आने का
  इस उमीद मे उसकी लौ है बरक़रार
  कही दूर जलता एक दिया है,


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