जिंदगी है ये पहेली
जितना सुलझाना चाहूँ मैं उतनी ही उलझती जाए
कभी खुशी होती इसकी मेहमान
कभी गम करते इसका इंतेजार
कभी तन्हाई को राही बना चल पड़े अकेला
कभी ढूँढे ये हमसफ़र
उड़ चल कही मनमौजी पंछी की तरह
बह चल किसी नदी की तेज धार में
हर दिन की परेशानिओ से दूर
चल चले एक ऐसा आसियान बनाए जहाँ
आख़िर ये है कैसी पहेली
इसको सुलझा तो पाए
जितना सुलझाना चाहूँ मैं उतनी ही उलझती जाए
कभी खुशी होती इसकी मेहमान
कभी गम करते इसका इंतेजार
कभी तन्हाई को राही बना चल पड़े अकेला
कभी ढूँढे ये हमसफ़र
उड़ चल कही मनमौजी पंछी की तरह
बह चल किसी नदी की तेज धार में
हर दिन की परेशानिओ से दूर
चल चले एक ऐसा आसियान बनाए जहाँ
आख़िर ये है कैसी पहेली
इसको सुलझा तो पाए
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